 
                  Case against 20 Policemen : मऊ में 20 पुलिसकर्मियों पर कसा शिकंजा!
जमीनी विवाद के एक मामले ने मऊ जिले की पुलिस को कटघरे में ला खड़ा किया है। सरायलखनसी थाना क्षेत्र के उस्मानपुर ताजपुर गांव में हुए एक जमीनी विवाद में पुलिस की कथित गुंडई और एकतरफा कार्रवाई के बाद कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है। थानाध्यक्ष शैलेश सिंह सहित 14 नामजद और 6 अज्ञात पुलिसकर्मियों पर मुकदमा दर्ज करने का आदेश जारी हुआ है। इस घटना ने पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। क्या वर्दी अब कानून की रक्षा के बजाय गुंडागर्दी का हथियार बन रही है?
Case against 20 Policemen : जमीनी विवाद ने लिया खतरनाक मोड़
उस्मानपुर ताजपुर गांव में रामजतन यादव और रामभवन यादव के बीच लंबे समय से जमीनी विवाद चल रहा था। लेकिन यह मामला तब और गंभीर हो गया – जब रामभवन यादव के रिश्तेदार, एक सब-इंस्पेक्टर, ने कथित तौर पर पुलिस को अपने पक्ष में कर लिया। अधिवक्ता प्रमोद कुमार शर्मा के अनुसार – पुलिसकर्मियों ने रामजतन यादव के घर में घुसकर न सिर्फ मारपीट की – बल्कि महिलाओं और परिजनों के साथ भी दुर्व्यवहार किया। सबूत मिटाने की कोशिश ने इस मामले को और संदिग्ध बना दिया। क्या पुलिस अब निजी हितों के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही है?
Case against 20 Policemen : 14 नामजद, 6 अज्ञात पर FIR का आदेश
मामला कोर्ट तक पहुंचा – जहां जज ने पुलिस की इस मनमानी को गंभीरता से लिया। कोर्ट ने थानाध्यक्ष शैलेश सिंह, चंदेल सिंह, एसआई केसर यादव, एसआई कोमल कसौधनर सहित 14 नामजद और 6 अज्ञात पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया। इस आदेश ने पुलिस महकमे में हड़कंप मचा दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह आदेश न सिर्फ पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में एक कदम है – बल्कि यह भी दिखाता है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित कर पाएगी?
Case against 20 Policemen : पुलिस पर ‘प्राइवेट गुंडागर्दी’ का आरोप
स्थानीय निवासियों में इस घटना को लेकर भारी आक्रोश है। लोगों का कहना है कि पुलिस ने वर्दी की आड़ में प्राइवेट गुंडों की तरह व्यवहार किया। एक ग्रामीण ने गुस्से में कहा – “पुलिस हमारी रक्षा के लिए है या हमें डराने के लिए?” रामजतन यादव के परिवार का आरोप है कि पुलिस ने न सिर्फ उनके साथ मारपीट की, बल्कि सबूतों को मिटाने की कोशिश भी की ताकि मामला दब जाए। क्या पुलिस का यह रवैया कानून-व्यवस्था की रक्षा करने के बजाय उसे कमजोर कर रहा है?
Case against 20 Policemen : कोर्ट का आदेश, न्याय की उम्मीद
कोर्ट के इस सख्त आदेश ने पीड़ित परिवार को न्याय की एक किरण दिखाई है। अधिवक्ता प्रमोद कुमार शर्मा ने बताया कि कोर्ट ने इस मामले में निष्पक्ष जांच के आदेश दिए हैं। यह मामला अब न सिर्फ पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है, बल्कि यह भी दिखा रहा है कि आम जनता की आवाज को दबाया नहीं जा सकता। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तरह के आदेश पुलिस सुधार की दिशा में कोई बड़ा बदलाव ला पाएंगे?
Case against 20 Policemen : पुलिस सुधार की जरूरत – कब तक चलेगा यह सिलसिला?
यह घटना मऊ में पुलिस की मनमानी का पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई बार पुलिस पर एकतरफा कार्रवाई और निजी हितों के लिए कानून का दुरुपयोग करने के आरोप लग चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में कहा था कि फर्जी मामले दर्ज करना या सबूत गढ़ना पुलिस के आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं है, और ऐसे मामलों में पुलिसकर्मी धारा 197 CrPC के संरक्षण का दावा नहीं कर सकते। फिर भी – बार-बार ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं। क्या यह समय नहीं है कि पुलिस सुधारों को गंभीरता से लागू किया जाए?

 
         
         
         
        