 
                  Ballia News: ग्रामीणों के बीच गांव की सामाजिक संरचना और आरक्षण प्रक्रिया का मुद्दा गरम
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Ballia News: उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नवानगर ब्लॉक में स्थित जमुई गांव में पंचायती चुनाव का माहौल धीरे-धीरे गरमाने लगा है. ग्रामीणों के बीच उत्साह के साथ-साथ असंतोष और बगावत की चिंगारी भी सुलग रही है. 2011 की जातिगत जनगणना के आधार पर गांव की सामाजिक संरचना को लेकर उठे सवालों ने इस बार चुनावी चर्चाओं को और गर्म कर दिया है.
2011 की जनगणना और विवाद
2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, जमुई गांव में अनुसूचित जाति (एससी) की जनसंख्या 554, अनुसूचित जनजाति (एसटी) की 155, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की 1009 और सामान्य वर्ग (जनरल) की 1918 है. इन आंकड़ों के आधार पर गांवों का परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया तय की जाती रही है. हालांकि, इस बार इन आंकड़ों को लेकर ग्रामीणों में असंतोष बढ़ता दिख रहा है.
ग्रामीणों की क्या है मांग ?
गांव की एक महिला, बविता कनौजिया, ने इस मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी है.उनका कहना है कि आजादी के बाद से जमुई गांव में एससी और एसटी समुदाय को आरक्षण का लाभ नहीं मिल सका है. उन्होंने कहा, “हमारे गांव में एससी और एसटी की जनसंख्या का प्रतिशत अधिक है, जबकि ओबीसी और जनरल की संख्या कम है. फिर भी, 2011 की जनगणना के पुराने आंकड़ों के आधार पर ही परिसीमन और आरक्षण की प्रक्रिया को अपडेट किया जा रहा है, जो सरासर गलत है.”
बविता ने आगे कहा, “जब हमें संवैधानिक रूप से आरक्षण का अधिकार मिला है, तो हम उसका लाभ क्यों नहीं उठा सकते? क्यों बार-बार अन्य वर्गों को इसका फायदा मिलता है? हमारे गांव के लोगों को वो अधिकार और लाभ नहीं मिल पा रहा, जो हमें मिलना चाहिए.” उनकी ये बात गांव के कई अन्य लोगों के असंतोष को भी दर्शाती है, जो इस मुद्दे पर बगावत का रुख अपनाने लगे हैं.
गांव में है अंसतोष
गांव में इस असंतोष ने अलग-अलग जगहों पर विरोध और चर्चाओं को जन्म दिया है. कई ग्रामीणों का मानना है कि पुरानी जनगणना के आंकड़ों के बजाय वर्तमान जनसंख्या और सामाजिक संरचना को ध्यान में रखकर आरक्षण और सीटों का निर्धारण होना चाहिए.ये मांग न केवल जमुई गांव तक सीमित है, बल्कि आसपास के क्षेत्रों में भी इस तरह की आवाजें उठ रही हैं.
पंचायती चुनाव के इस माहौल में ये सवाल जोर पकड़ रहा है कि क्या ग्रामीणों की मांग पर ध्यान दिया जाएगा? क्या प्रशासन पुराने आंकड़ों को अपडेट करने की दिशा में कोई कदम उठाएगा? फिलहाल, जमुई गांव के लोग अपनी आवाज को बुलंद करने और अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार दिख रहे हैं.
ये मुद्दा न केवल स्थानीय स्तर पर, बल्कि पूरे क्षेत्र में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव की एक नई बहस को जन्म दे सकता है.

 
         
         
         
        