 
                  Boycott of Bihar elections की धमकी, तेजस्वी बहुत कुछ बोल गए
बिहार विधानसभा में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर नया सियासी तूफान खड़ा हो गया है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को “बेईमानी” करार देते हुए आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बहिष्कार का संकेत दिया है।
Boycott of Bihar elections: वोटर लिस्ट में ‘बेईमानी’ का खेल?
तेजस्वी का कहना है कि जब चुनाव प्रक्रिया पहले ही “फिक्स” हो चुकी है तो ऐसे में चुनाव का औचित्य क्या रह जाता है? उन्होंने न्यूज एजेंसी IANS से कहा- “हम इस पर विचार करेंगे कि जनता क्या चाहती है। अगर सब कुछ तयशुदा है, तो चुनाव क्यों?” तेजस्वी यादव का ये बयान बिहार की सियासत में भूचाल लाने वाला है। सवाल है क्या विपक्ष वाकई चुनाव से बाहर रहेगा या यह सिर्फ एक सियासी दांव है?
Boycott of Bihar elections: नीतीश बनाम तेजस्वी, जुबानी जंग का नया दौर
बिहार विधानसभा में SIR पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के बीच तीखी नोकझोंक ने माहौल को और गरमा दिया। तेजस्वी के बयान पर नीतीश ने उन्हें “बच्चा” कहकर तंज कसा, जिसके बाद दोनों पक्षों के बीच असंसदीय भाषा का इस्तेमाल हुआ। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव को सदन की कार्यवाही दोपहर 2 बजे तक स्थगित करनी पड़ी। तेजस्वी ने काली टी-शर्ट पहनकर चुनाव आयोग की प्रक्रिया के खिलाफ अपना विरोध जताया और सवाल उठाया कि जब चुनाव नजदीक हैं – तो SIR की प्रक्रिया इतनी देर से क्यों शुरू की गई? सवाल ये भी क्या यह नीतीश और तेजस्वी के बीच व्यक्तिगत रंजिश का नया मोड़ है?
Boycott of Bihar elections: चुनाव आयोग पर सवाल, मतदाता सूची पर विवाद
तेजस्वी ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने कहा- “हम SIR के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन जिस तरह यह प्रक्रिया चल रही है, वह आपत्तिजनक है। केवल 2-3% मतदाताओं के पास ही वे दस्तावेज हैं, जो आयोग मांग रहा है। नकली मतदाताओं का डर कहां से आया? क्या आयोग यह कहना चाहता है कि नकली वोटों ने नीतीश को मुख्यमंत्री और मोदी को प्रधानमंत्री बनाया?” तेजस्वी ने यह भी दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट में आयोग ने अपने हलफनामे में विदेशी मतदाताओं के नाम होने से इनकार किया है। सवाल है कि क्या यह विवाद बिहार में चुनावी विश्वास को कमजोर करेगा?
Boycott of Bihar elections से कैसे बदलेंगे सियासी समीकरण?
अगर विपक्ष – खासकर महागठबंधन – चुनाव का बहिष्कार करता है तो बिहार की सियासत में बड़े उलटफेर हो सकते हैं। संविधान के तहत चुनाव आयोग को समय पर चुनाव कराना अनिवार्य है – भले ही कोई दल हिस्सा ले या न ले। अगर केवल सत्तारूढ़ दल (JDU-BJP गठबंधन) या निर्दलीय उम्मीदवार ही मैदान में रहते हैं तो कई सीटों पर निर्विरोध जीत तय हो सकती है। इससे सत्तारूढ़ गठबंधन की स्थिति मजबूत होगी – लेकिन लोकतंत्र की पारदर्शिता और प्रतिनिधित्व पर सवाल उठेंगे। तेजस्वी सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं – जैसा कि 1989 के मिजोरम चुनाव में हुआ था, लेकिन कोर्ट ने तब भी चुनाव पर रोक से इनकार कर दिया था। सवाल है क्या विपक्ष का यह कदम सियासी आत्मघाती साबित होगा?
Boycott of Bihar elections: जनता की आवाज या सियासी ड्रामा?
तेजस्वी का कहना है कि वे जनता की राय और सहयोगी दलों से चर्चा के बाद बहिष्कार पर फैसला लेंगे। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ाएगा या उन्हें सियासी अलगाव की ओर ले जाएगा? अगर महागठबंधन चुनाव से बाहर रहता है, तो इसका सबसे बड़ा फायदा सत्तारूढ़ गठबंधन को होगा। वहीं, विपक्ष के इस कदम से मतदाताओं में भ्रम और असंतोष बढ़ सकता है। क्या तेजस्वी का यह दांव बिहार की जनता को लामबंद करेगा या उनकी सियासी जमीन कमजोर करेगा?
Boycott of Bihar elections अगर हुआ तो क्या संभव, समझें 5 प्वाइंट्स में
- सत्तारूढ़ दल को फायदा: अगर विपक्ष बहिष्कार करता है, तो JDU-BJP गठबंधन की राह आसान हो सकती है। कई सीटों पर उनके उम्मीदवार निर्विरोध जीत सकते हैं।
- विपक्ष की विश्वसनीयता पर सवाल: बहिष्कार का फैसला RJD और महागठबंधन की सियासी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि मतदाता इसे जनता की आवाज दबाने के रूप में देख सकते हैं।
- जनता में भ्रम: मतदाता सूची और SIR पर विवाद से आम जनता में चुनाव प्रक्रिया के प्रति अविश्वास बढ़ सकता है।
- कानूनी जटिलताएं: सुप्रीम कोर्ट में मामला जाने पर भी चुनाव रद्द होने की संभावना कम है, जिससे विपक्ष का दांव कमजोर पड़ सकता है।
- सियासी ध्रुवीकरण: यह विवाद बिहार में सियासी ध्रुवीकरण को और तेज कर सकता है – जहां नीतीश और तेजस्वी के बीच पहले से ही तनाव चरम पर है।
Boycott of Bihar elections की धमकी से उठे सवाल – जो सुर्खियों में
- क्या तेजस्वी का बहिष्कार का दांव उनकी सियासी जमीन को मजबूत करेगा या कमजोर?
- क्या मतदाता सूची पर विवाद बिहार में लोकतंत्र की विश्वसनीयता को प्रभावित करेगा?
- अगर विपक्ष चुनाव से बाहर रहता है, तो क्या सत्तारूढ़ दल की निर्विरोध जीत लोकतंत्र के लिए खतरा होगी?
- क्या यह पूरा विवाद नीतीश और तेजस्वी के बीच व्यक्तिगत रंजिश का नतीजा है?
- क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई बड़ा हस्तक्षेप करेगा?
कुल मिलाकर बिहार की सियासत में यह नया मोड़ न केवल चुनावी समीकरण बदल सकता है – बल्कि लोकतंत्र की पारदर्शिता और जनता के विश्वास पर भी गहरा असर डाल सकता है। आपकी इस बारे में क्या राय है – कमेंट कर हमें जरूर बताइएगा।
Written by khabarilal.digital Desk
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