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Lekhraj Daroga Journalist Clash: वृंदावन में कैमरे नहीं, किरदार कड़क निकले
Lekhraj Daroga Journalist Clash update
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में आस्था का सैलाब था, लेकिन वहां मौजूद पत्रकारों के लिए ये दिन भक्ति से ज़्यादा भस्मासुर दर्शन जैसा साबित हुआ। वजह? दारोगा लेखराज जी, जो मीडिया वालों से ऐसे पेश आए जैसे वो कैमरे नहीं, कट्टे लेकर आए हों। AK शर्मा के कार्यक्रम की कवरेज करने पहुंचे रिपोर्टर जैसे ही फोकस करने लगे, दारोगा जी का ग़ुस्सा “108 मेगावोल्ट” पर पहुंच गया।
Lekhraj Daroga Journalist Clash: जब सुरक्षा का मतलब हुआ – “खबर बंद करो वरना…”
दारोगा जी ने पत्रकारों को समझाया कि सुरक्षा का मतलब है—आप जो दिखाएं, वो हम तय करेंगे। कैमरा ऑन करने से पहले अनुमति ली गई या नहीं, ये सवाल ऐसे पूछा गया जैसे कोई खुफिया अड्डे की तस्वीर खींची जा रही हो। पत्रकारों ने जैसे ही सवाल किया, जवाब में मिला – “बाहर निकाल दूंगा”, और वो भी कैमरे के सामने!
क्या Police अब पत्रकारों को भी बिना माइक के खामोश कर देगी?
Lekhraj Daroga Journalist Clash: पत्रकारिता की गर्दन पर बेल्ट नहीं, बर्दाश्त कस रहा है
वृंदावन की इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया—क्या पत्रकार सिर्फ प्रेस कार्ड के भरोसे रिपोर्टिंग करें या अब बॉडीगार्ड भी रखें? बांके बिहारी मंदिर जैसे संवेदनशील धार्मिक स्थल पर कवरेज के नाम पर जिस तरह पुलिस ने मीडिया को हड़काया, वो “लोकतंत्र के चौथे स्तंभ” के लिए एक तमाचा ही नहीं, लात-मुक्के जैसा था।
Lekhraj Daroga Journalist Clash का वीडियो वायरल, मगर पुलिस विभाग चुप
इस Clash का वीडियो अब वायरल हो चुका है। ट्विटर (X) पर #LekhrajDaroga ट्रेंड कर रहा है, मगर पुलिस महकमे की ज़ुबान पर ताला है। कोई बयान नहीं, कोई खेद नहीं, बस चुप्पी और अनुशासन के नाम पर “शह”।
क्या यूपी पुलिस के दारोगा अब मीडिया ट्रायल नहीं, मीडिया ट्रैक्टर चलाएंगे?
कहानी में एंट्री AK शर्मा की, लेकिन स्पॉटलाइट लेखराज दारोगा पर
AK शर्मा का कार्यक्रम शांतिपूर्वक चल रहा था। लेकिन सारा मीडिया ध्यान मुख्य अतिथि से हटकर मुख्य अभियुक्तनुमा दारोगा जी की ओर चला गया। जिस कार्यक्रम में प्रशासन की कार्यकुशलता दिखनी चाहिए थी, वहाँ “कैसे चुप कराओ सवाल पूछने वालों को” – इस पर एक demo चल रहा था।
Lekhraj Daroga Journalist Clash: ये सिर्फ झड़प नहीं, पत्रकारिता पर टिप्पणी है
पत्रकार सिर्फ सवाल नहीं पूछते, वो गवाह होते हैं लोकतंत्र के। लेकिन वृंदावन की इस घटना ने साफ कर दिया कि दारोगा जी को कैमरे से ज़्यादा डर कैमरे वाले से है। लेखराज दारोगा जैसे अधिकारी अगर कानून की रक्षा नहीं, Ego की सुरक्षा करने लगें, तो लोकतंत्र का चीरहरण लाजिमी है।
UP पुलिस के तमाम PR कैंपेन के बावजूद, ज़मीनी हकीकत यही है—जहाँ कैमरा है, वहाँ खींचतान है। और जहां पत्रकार हैं, वहाँ दारोगा साहब का तिलमिलाना तय है। वृंदावन में जो हुआ, वो सिर्फ झड़प नहीं, पत्रकारिता पर डंडा है। और ये डंडा अब इंटरनेट पर वायरल है।

 
         
         
         
        