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“Banda House Collapse” नहीं, ज़िंदगी का आख़िरी अध्याय था ये
बांदा जिले की एक रात… काली, स्याह और कहर की तरह बरसती बारिश। और उस बारिश में मिट्टी नहीं, एक पूरा परिवार भीग रहा था—नींद में, सपनों में, भरोसे में। और फिर… भरभराकर कच्चा मकान गिरा, जैसे सरकार की योजनाएं गिरती हैं—अचानक, बिना चेतावनी के। इस हादसे (Banda House Collapse) में एक ही परिवार के 9 लोग मलबे में दब गए। दो मासूम, जो शायद सुबह स्कूल जाने की तैयारी में होते, इस रात ज़िंदगी से ही छुट्टी ले बैठे।
“Rain Tragedy Uttar Pradesh” में सिर्फ पानी नहीं, सिस्टम भी बह गया।Banda House Collapse
बारिश आई तो लोगों ने राहत की सांस ली—पर बांदा के पिपरी खेरवा गांव में बारिश नहीं, मौत आई थी। रात के दो बजे जब सब नींद में थे, तभी छत ने अपना साथ छोड़ दिया। दीवारें गिरीं, और साथ ही प्रशासन की नींव भी। आवाज़ से गांव जाग गया, पर सिस्टम अब भी सो रहा था। इस हादसे (Rain Tragedy Uttar Pradesh) में दो घंटे तक कोई एंबुलेंस नहीं पहुंची। दो मासूमों की जान चली गई—क्योंकि पानी तेज़ था, और व्यवस्था धीमी।
“UP Rain Disaster” में सबसे बड़ा खतरा: लेट लतीफ राहत व्यवस्था। Banda House Collapse
धीरज कुशवाहा, जो खुद पीड़ित परिवार से हैं, बताते हैं कि पुलिस-प्रशासन से ज़्यादा तेज़ वो थे। 30 किलोमीटर दूर से अपनी गाड़ी में घायलों को लेकर खुद अस्पताल आए।ये हादसा (UP Rain Disaster) सिर्फ कुदरत की नहीं थी, ये इंसानी असंवेदनशीलता की भी थी। जिन बच्चों को समय पर मेडिकल सुविधा मिलती, वो अब अस्पताल की जगह अखबार में फोटो बन गए।
“Banda District Accident” में अफसरों की आंख खुली, पर देर से।Banda House Collapse
घटना की जानकारी जब DM जे. रिभा तक पहुंची, वो तुरंत जिला अस्पताल पहुँचीं। घायलों से मिलीं, हाल जाना, इलाज का भरोसा दिलाया। लेकिन अफ़सोस ये है कि अफ़सर घटना के बाद ही तेज़ होते हैं। Banda District Accident में अगर समय रहते एंबुलेंस और पुलिस पहुंच जाती, शायद दो जिंदगियां बच सकती थीं। अब सिस्टम सिर्फ “आपदा राहत” की औपचारिकता निभा रहा है।
“Disaster Relief UP”: आश्वासन की बारिश, राहत की सूखा।
DM ने अधिकारियों को आदेश दिया कि पीड़ितों को जल्द से जल्द आपदा राहत राशि दी जाए। लेकिन यूपी में Disaster Relief का ट्रैक रिकॉर्ड वैसा ही है, जैसे रेल की बुकिंग—पेंडिंग में ही रहती है। पीड़ित परिवार को हर संभव मदद का वादा किया गया है। लेकिन ये वादा नहीं, वेटिंग है। लोग जान गँवा चुके हैं, और अब राहत राशि कागजों में अटकने वाली है।
“Mud House Fall Banda” की कहानी, मिट्टी में मिलते इंसानों की दास्तां
कच्चा मकान गिरा, मलबा गिरा, पर सबसे पहले गिरा भरोसा। गांवों में अब भी हजारों परिवार ऐसे कच्चे मकानों में रहते हैं, जो किसी भी बारिश में ‘कब्र’ बन सकते हैं।ये हादसा (Mud House Fall Banda) कोई अनोखी घटना नहीं, ये सिस्टम की अनदेखी का नतीजा है। हर साल सैकड़ों ऐसे हादसे होते हैं और हर बार सिर्फ एक ही चीज़ नहीं गिरती—सरकारी जवाबदेही।

 
         
         
         
        