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Bribery in DM Office update
GPF Bribe Case – सरकारें बदलीं, घूस की चाय वही, कप नया
Bribery in DM Office उस कड़वी सच्चाई की याद दिलाता है कि
“इंकलाब जिंदाबाद हो सकता है, लेकिन बाबू की टेबल पर फाइल बिना नकद के आज़ाद नहीं होती।”
15 सालों में हमने डिजिटल इंडिया, पारदर्शिता और जीरो टॉलरेंस जैसे जुमले सुने हैं। मगर जमीनी सच यही है – फाइल तभी आगे बढ़ती है जब नीचे कुछ गिरता है।
DM ऑफिस हो या पंचायत सचिवालय, सब जगह एक ही नियम – “रिटायरमेंट का सर्टिफिकेट फ्री में मिलेगा, लेकिन भुगतान तभी होगा जब बख्शीश होगी।”
Bribery Case in Varanasi – बोनस के बदले बख्शीश चाहिए बाबू को
भारत में अब इंसान रिटायर हो सकता है, पर रिश्वतखोरी नहीं। गाजीपुर कलेक्ट्रेट में तैनात वरिष्ठ सहायक अभिनव को एंटी करप्शन वाराणसी की टीम ने रंगे हाथ पकड़ लिया। गुनाह? एक बुज़ुर्ग की पत्नी का बोनस भुगतान बिना रिश्वत के नहीं कर रहा था।
डीएम के आदेश, हाईकोर्ट के निर्देश सब टेबल की दराज में दबे पड़े थे — जब तक 20 हज़ार रुपये की चढ़ावे की गंध न आए, तब तक बाबू की कलम चलने को तैयार नहीं थी।
Senior Assistant Caught Taking Bribe – जब कानून हार गया और लालच जीत गया
नाम – अभिनव, पोस्ट – वरिष्ठ सहायक, लोकेशन – गाजीपुर कलेक्ट्रेट का सचिवालय। एक बुजुर्ग कर्मचारी, जिसकी पत्नी का बोनस कई महीनों से पेंडिंग था। हाईकोर्ट और डीएम ने आदेश दे दिया था, लेकिन बाबू के पेट की भूख कोर्ट ऑर्डर से नहीं, कैश से शांत होती है।
कई आवेदन दिए, कई दफ्तरों की सीढ़ियाँ चढ़ीं – लेकिन फाइल वहीं की वहीं। अंत में जब 20 हज़ार की ‘सेवा शुल्क’ मांगी गई, तो बुजुर्ग ने शिकायत दर्ज करवाई। फिर क्या था – वाराणसी की एंटी करप्शन टीम ने योजना बनाकर छापा मारा और अभिनव को रंगे हाथ घूस लेते पकड़ लिया।
GPF Bribe Case – बुज़ुर्ग की उम्मीद पर पड़ा भ्रष्टाचार का ताला
एक आम कर्मचारी की पूरी उम्र बीत जाती है सिस्टम में, लेकिन रिटायरमेंट के बाद भी चैन नहीं मिलता। किसी की फाइल गुम हो जाती है, किसी की पेंशन रुक जाती है, और किसी से बोनस के नाम पर भी ‘हफ्ता’ मांगा जाता है।
ये कोई isolated case नहीं है, ये तो हर जिले का चेहरा है। GPF, Bonus, Gratuity – सब कुछ बिकता है, बस रेट तय है।
Bribery in DM Office – शासन बदला, लेकिन सोच वहीं की वहीं
डिजिटल इंडिया, जीरो टॉलरेंस, ट्रांसपेरेंसी – सब स्लोगन रह गए हैं। कलेक्ट्रेट जैसे अफसरों के अड्डे आज भी भ्रष्टाचार के पुराने गुरुकुल हैं। हर टेबल के नीचे एक नजर न आने वाला कैशबॉक्स होता है, जहां इंसान की इज्जत, हक और हिम्मत सब बिकते हैं।
और हद तो तब हो जाती है जब कोर्ट के आदेश के बाद भी घूस की जरूरत पड़ती है। ये लोकतंत्र नहीं, ‘लूटतंत्र’ है।
Anti Corruption Team Action – एक की गिरफ्तारी, लेकिन बाकी कितने खुले हैं?
वरिष्ठ सहायक अभिनव की गिरफ्तारी पर एक तरफ शाबाशी मिल रही है, दूसरी तरफ ये सवाल भी उठ रहा है कि क्या ये सिर्फ एक ‘मोहरा’ है? बाकी मोहरे अब भी DM ऑफिस की साज-सज्जा में लगे हैं, जो सिर्फ नोटों की गंध पर काम करते हैं।
कहते हैं – “बेटा बैंक में काम करे तो गर्व होता है, बाबू बन जाए तो फाइलें दौड़ती हैं।” अब जोड़ लीजिए – बाबू घूस ले तो कैमरे भी दौड़ते हैं।
Varanasi Bribery – जनता पूछ रही है, क्या सिर्फ दिखावे की कार्रवाई थी?
DM ऑफिस जैसे प्रतिष्ठानों में जब ऐसे कांड होते हैं, तो भरोसे का गला घुटता है। एक बुज़ुर्ग जो अपनी पत्नी के बोनस के लिए चक्कर काट रहा था, उसकी आखिरी उम्मीद भी बाबू की लालची हथेली में फंस गई।
घूस सिर्फ पैसे की डील नहीं होती, ये भरोसे का बलात्कार है। और जब ये अपराध कलेक्ट्रेट के भीतर हो, तो समझिए – सिस्टम की आत्मा मर चुकी है।
Bribery in Government Offices – अब सिर्फ FIR नहीं, फटकार चाहिए
ये खबर सिर्फ रिपोर्ट नहीं है, ये सिस्टम पर तमाचा है। अगर आपको गुस्सा नहीं आ रहा, तो या तो आप सिस्टम में हैं, या फिर आपको आदत हो गई है।
जनता की अदालत अब इंतजार नहीं कर रही – वो अब सीधे कार्रवाई चाहती है। हर रिश्वतखोर बाबू को यही संदेश जाना चाहिए – “अब अगली फाइल घूस से नहीं, कानून से चलेगी।”
Written by khabarilal.digital Desk
🎤 संवाददाता: सुनील गुप्ता
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