School Merge Drama-बुलंदशहर
School Merge Drama: बुलंदशहर में ‘बंधकगिरी’ का महामहाभारत
Hindi News: School Merge Drama-बुलंदशहर के शकरपुर गांव में (School Merge Drama ) एक ऐसे नाटक रचा कि बॉलीवुड वाले भी शरमा जाएं!शिक्षक अंकित कुमार ने वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े स्क्रिप्ट राइटर न कर पाएं — खुद को ही बंधक बनवा लिया!
कहानी में ट्विस्ट? खुद ही ग्रामीणों को उकसाया, खुद ही अफसरों को फोन किया — ‘आओ बचाओ, हमें गांव वालों ने घेर लिया है!’
वाह गुरु, ऐसा School Merge Drama तो कोई ओटीटी भी न बना पाए!
School Merge Drama: बंधक नाटक में छुपा था ट्रांसफर का डर

असल कहानी सुनिए — शकरपुर के सरकारी स्कूल में बच्चों की गिनती मर्ज से ज्यादा तेजी से घट रही थी,
तो सरकार ने इसे पास के गांव चठेरा के स्कूल में मर्ज कर दिया।
लेकिन अंकित बाबू को नयी पोस्टिंग रास न आई।
अब सरकारी स्कूल में पढ़ाने से बड़ा काम तो नाटक रचाना था!
सो, गांव वालों को भरोसा दिलाया — ‘तुम्हारे बच्चों को दूर भेज देंगे! रोक लो हमें, बंधक बना लो!’
गांव वालों ने भी कहा — ‘लो कर दिया, अब तो मीडिया को भी बुला लो!’
School Merge Drama: DM ने खोली पटकथा की पोल

जैसे ही बंधक नाटक की गूंज डीएम साहब तक पहुंची, बेसिक शिक्षा अधिकारी लक्ष्मीकांत पांडेय को स्क्रिप्ट थमाई गई।
जांच हुई — पता चला मास्टर साहब खुद ही लेखक, खुद ही निर्देशक, खुद ही बंधक!
बाकी सब पब्लिक को झांसा!
अब अंकित बाबू की कुर्सी गई तेल लेने — तुरंत निलंबित, बंधक ड्रामा का शो बंद!
School Merge Drama: स्कूल मर्ज पर सवाल, ड्रामा पर तंज
मुद्दा सिर्फ मास्टर साहब का नाटक नहीं है — असली बात है School Merge Drama की स्क्रिप्ट में छुपी सरकारी कहानी।
1862 सरकारी स्कूलों में से 509 में बच्चे गिनती के ही रह गए हैं।
सरकार ने कहा — ‘मर्ज करो, मॉर्डन स्कूल बनाओ।’
अफसर बोले — ‘बच्चों को अच्छे टीचर, अच्छी बिल्डिंग, अच्छा फर्नीचर मिलेगा।’
गांव वाले बोले — ‘हमारे बच्चे रोज़ दूर गांव क्यों जाएं? रास्ते में कौन सुरक्षा देगा? कोई सुनने वाला है?’
School Merge Drama: सरकारी सिस्टम बनाम गांव वाले

गांव वालों का गुस्सा जायज है — सवाल है कि School Merge Drama में बच्चों और मां-बाप से पूछे बिना मर्ज कौन करता है?
फिर शिक्षा विभाग हर नाकामी को बच्चों के ‘हित’ में लपेट कर क्यों बेचता है?
और गुरु, अंकित बाबू जैसे ‘कर्मवीर’ ऐसे ड्रामे न रचें तो शायद असली सवाल पूछे भी कौन?
School Merge Drama: किसने छीनी गांव की घंटी?
सवाल बड़ा है — School Merge Drama के नाम पर हर गांव की वो स्कूल की घंटी, जो कभी सुबह सबसे पहले गांव को जगाती थी, अब क्यों खामोश हो रही है?
सरकार ने कभी गांव-गांव Primary School खोले थे ताकि बच्चा दूर न भटके, मां-बाप खेत से लौटे तो बच्चा किताब में डूबा मिले।
फिर ऐसा क्या हो गया कि अब वही स्कूल खाली हैं?
क्यों सरकारी स्कूलों में बच्चे कम हो रहे हैं?
क्या मर्ज करना ही इलाज है या पहले देखना चाहिए कि पढ़ाई में दम क्यों नहीं?
सरकारी स्कूल में टीचर हैं लेकिन पढ़ाई नहीं, बच्चे हैं लेकिन किताबें नहीं, मिड डे मील है लेकिन शिक्षा की भूख गायब।
तो गलती किसकी — उस गरीब मां-बाप की, जो प्राइवेट स्कूल में फीस भरने को मजबूर हैं, या उस सिस्टम की, जिसने सरकारी स्कूल को बच्चों से ज़्यादा आंकड़ों में बदल दिया?
जवाब चाहिए !
क्योंकि जब तक जवाब नहीं मिलेगा, तब तक ऐसे School Merge Drama होते रहेंगे —
Written by khabarilal.digital Desk
🎤 संवाददाता: सुरेंद्र सिंह भाटी
📍 लोकेशन: बुलंदशहर, यूपी
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