Railway Negligence ने छीन ली मासूम की सांसें
“Railway Negligence से मासूम की मौत — बांदा की लापरवाही पर उठे सवाल”
मौत की पटरियों पर Railway Negligence का खूनी खेल
बांदा ज़िले के महाराणा प्रताप चौक से उठी चीखें इस बात का सबूत हैं कि Railway Negligence कैसे एक मासूम की सांसें छीन सकता है। शहर कोतवाली क्षेत्र के अंदर रेलवे के दोहरीकरण प्रोजेक्ट में सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं। बिना कोई फेंसिंग, बिना कोई अलर्ट — हाइड्रा मशीन से भारी स्लीपर ट्रैक पर खिसकाए जा रहे थे और उसी दौरान 8 साल का आशीष खेलता-खेलता मौत के मुंह में समा गया।
ट्रैक पर लापरवाही, हाइड्रा से खिसका स्लीपर और दब गया आशीष।Railway Negligence
Railway Negligence की इंतहा देखिए — जिस जगह पर रेलवे के काम चलते हैं, वहां बच्चों की आवाजाही रोकने की कोई व्यवस्था नहीं। स्लीपर ले जाते वक्त हाइड्रा चालक ने ज़रा सी भी एहतियात नहीं बरती। पल भर में स्लीपर खिसका और मासूम आशीष को दबा गया। आशीष के चीखने की आवाज़ भी दब गई और रेलवे महकमे की लापरवाही भी — अब सवाल उठ रहा है कि मासूमों की ज़िंदगी से खिलवाड़ का जिम्मेदार कौन?
मौत के बाद भी कार्रवाई में हीलाहवाली, परिजनों का फूटा गुस्सा
Railway Negligence से आशीष की मौत के बाद गुस्सा ऐसा फूटा कि परिजनों ने मासूम के शव को महाराणा प्रताप चौक पर रखकर जाम लगा दिया। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति! करीब दो घंटे तक मासूम की लाश पटरियों की लापरवाही पर चीखती रही। पुलिस और प्रशासन के अधिकारी मौके पर पहुंचे लेकिन लापरवाह रेलवे के किसी जिम्मेदार का नामोनिशान नहीं।
हादसा रोक सकते थे, पर लापरवाही जीत गई। Railway Negligence
Railway Negligence शब्द में नहीं, बांदा में सच्चाई में दिखा। रेलवे दोहरीकरण जैसी बड़ी परियोजना के नाम पर करोड़ों फूंक दिए जाते हैं लेकिन सुरक्षा मानकों पर एक रुपया भी नहीं। न कोई बेरिकेटिंग, न कोई चेतावनी बोर्ड, न ही कर्मचारियों को सुरक्षा गाइडलाइन का पालन करने की फिक्र। मासूम आशीष को दबाकर स्लीपर तो हटा दिया, मगर उस मासूम के घर में हमेशा के लिए मातम छोड़ दिया।
सिस्टम का सवाल – किसे सजा मिलेगी? Railway Negligence
Railway Negligence से हुई इस मासूम मौत का जवाब कौन देगा? हादसे की एफआईआर किस पर होगी? क्या सिर्फ हाइड्रा चालक बलि का बकरा बनेगा या रेलवे के इंजीनियरों की जवाबदेही भी तय होगी? परिजन तो इंसाफ चाहते हैं लेकिन क्या सिस्टम में इंसाफ बचा है? या मासूम की जान पर सिर्फ लीपापोती की फाइल चलेगी?
Railway Negligence का यह केस बता रहा है कि रेल प्रोजेक्ट्स में सुरक्षा के नाम पर सिर्फ कागज रंगे जाते हैं। बांदा की इस घटना ने रेल मंत्रालय को कटघरे में खड़ा कर दिया है। सवाल सिर्फ आशीष की मौत का नहीं है, सवाल है कि कब तक मासूम रेलवे की लापरवाही में कुचले जाते रहेंगे? अब जरूरी है कि Railway Negligence को खत्म कर ऐसे हादसों पर जीरो टॉलरेंस नीति लागू हो।
