मुरादाबाद के मूंढापांडे क्षेत्र में एक poor family पिछले 10 साल से अफ़सरों की लापरवाही से कच्चे घर में जीने को मजबूर है। तीन बच्चियों की ज़िंदगी हर बरसात में खतरे में पड़ती है, पर सरकार के अफ़सर अब भी गहरी नींद में हैं।
“Poor Housing : मुरादाबाद में गरीब के कच्चे घर पर पक्का सिस्टम!”
🏠 कच्ची दीवार, पक्के अफ़सर — poor family की कहानी
मुरादाबाद ज़िले के मूंढापांडे क्षेत्र की ग्राम पंचायत सरकड़ा खास में एक poor family की कहानी सुनकर आपका दिल पसीज जाएगा — लेकिन शायद ब्लॉक अधिकारी और ग्राम प्रधानों का दिल अब भी पक्का ही है। राज़ा पुत्र आबिद खां, जिनकी आंखें भी अब धोखा देने लगी हैं, पिछले 10 साल से अपनी पत्नी और तीन मासूम बच्चियों के साथ कच्चे मकान में रहने को मजबूर हैं।
🌧 बरसात का मौसम, डर और टूटती उम्मीदें
बरसात आते ही इस गरीब परिवार का दिल कांप उठता है। डर बस एक ही है — कहीं कच्ची दीवार फिर से ना गिर पड़े। पिछली बरसात में इसी गांव में कच्ची दीवार गिरने से दो मासूमों की मौत भी हो चुकी है। लेकिन हैरत देखिए, हादसों के बावजूद सरकारी अफ़सर कुंभकरण की नींद सो रहे हैं।
झूठे वादे, अधूरी फाइलें और poor family की बेबसी

राज़ा ने बीते दस साल में न जाने कितनी बार अफ़सरों और ग्राम प्रधान के दरवाज़े खटखटाए। हर बार मिला तो बस झूठा आश्वासन — “हो जाएगा, देखेंगे, करेंगे”। अफ़सरों के काग़ज़ी भरोसे की उम्र लंबी है, लेकिन इस गरीब परिवार की उम्मीदें हर साल कमज़ोर होती जा रही हैं।
आंखें कमज़ोर, रोजगार ठप — दोहरी मार
राज़ा कभी सिलाई का काम कर अपने बच्चों का पेट पालते थे। लेकिन आंखों की कमज़ोरी ने उनका काम भी छीन लिया। अब घर में तीन बच्चियों के साथ कोई कमाने वाला नहीं बचा। सरकार की गरीबों के लिए चलाई जा रही तमाम योजनाएं जैसे बस पोस्टर और भाषणों तक ही सीमित रह गई हैं।
लापरवाही किसकी? सवाल आज भी खड़ा है
सबसे बड़ा सवाल यही है: इसमें लापरवाही किसकी है? उत्तर प्रदेश सरकार की, या फिर सरकार के ज़िम्मेदार अफ़सरों की? जवाब देने वाला कोई नहीं। लेकिन गांव वाले जानते हैं कि हादसे के बाद भी जो अफ़सर जागे नहीं, उनसे उम्मीद करना भी बेमानी है।
सरकारी योजनाओं की हकीकत और poor family की हकीकत

उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार गरीबों को पक्का मकान देने के लिए योजनाएं चला रही है। लेकिन ज़मीन पर हकीकत देखिए — एक गरीब परिवार की ज़िंदगी आज भी कच्ची दीवारों के भरोसे टिकी है। सरकारी फाइलों में पक्की मंज़ूरी दीवार की तरह ही धूल फांक रही है।
क्या सरकार जागेगी या फिर कोई हादसा जगाएगा?
ग्रामीण कहते हैं, “जब तक हादसा ना हो, तब तक अफ़सरों को जगाना मुश्किल है।” सवाल आज भी हवा में है — क्या अब भी इंतज़ार होगा किसी और मासूम की बलि का?
गरीब की ये व्यथा सिर्फ़ एक घर की कहानी नहीं, बल्कि सरकारी सिस्टम की कच्ची नींव की कहानी है।
✅ Written by khabarilal.digital Desk
📍 Location: मुरादाबाद,यूपी
🗞️Reporter: सलमान युसूफ
