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PM Series

PM पद के लिए Jawahar Lal Nehru को मिले थे Zero Vote. फिर कैसे बने देश के पहले प्रधानमंत्री?

आधुनिक भारत के निर्माता ‘Nehru’ – PM Series Part-1

New Delhi : किसी भी देश की कमान उसके मुखिया यानि उसके Prime Minister के हाथ में होती है. देश का अच्छा-बुरा और भविष्य सब प्रधानमंत्री के हाथ में होता है. एक अच्छा प्रधानमंत्री अपने देश को बुलंदियों की नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है. इसके लिए उसके पास विज़न होना ज़रूरी है. जैसे आज भारत के प्रधानमंत्री का विज़न भारत को दुनिया की TOP 3 ECONOMY बनाना है. ठीक वैसे ही आज़ादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री का विज़न देश को आधुनिक भारत बनाना था. वैसे तो राजनीति में आने वाला हर शख्स देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देखता है. लेकिन ये सपना महज़ कुछ ही लोगों का पूरा हो पाता है. बात करें हमारे देश भारत की, तो अंग्रेज़ों से आज़ादी मिलने के बाद पिछले 77 सालों के इतिहास में अब तक सिर्फ 14 शख्सियतों को ये मौका मिला है.

बापू ने क्यों पटेल की जगह नेहरू को सौंपी देश की कमान?

हिंदुस्तान से अलग होकर जब पाकिस्तान बना था तो उस तरफ प्रधानमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार थे Mohammad Ali Jinnah और वही पाकिस्तान के काएदे-आज़म बने. मगर भारत में क्योंकि लंबी आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी. उस संघर्ष में कई क्रांतिवीरों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया तो कई सियासत दानों ने अपनी पूरी ज़िंदगी भारत की आज़ादी के लिए लड़ते-लड़ते गुज़ार दी. उन्ही के बलिदानों के बाद 15 अगस्त 1947 को आज़ाद भारत में हर हिंदुस्तानी ने आज़ादी की सांस ली. इतिहासकारों की मानें तो आज़ादी की तारीख से सालभर पहले ये साफ हो गया था कि भारत की गुलामी के दिन अब खत्म होने वाले हैं. साल 1946 के सेंट्रल असेंबली चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला था, तो ये भी तय था कि कांग्रेस अध्यक्ष ही भारत के पहले Internal Prime Minister बनेंगे. 1940 में बने रामगढ़ अधिवेशन के बाद लगातार 6 साल तक मौलाना अबुल कलाम ही कांग्रेस अध्यक्ष चुने जा रहे थे. कांग्रेस प्रेसिडेंट के चुनाव की घोषणा हुई, तो अबुल कलाम फिर चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन तब तक गांधी जी नेहरू के हाथ में कांग्रेस की कमान देने का मन बना चुके थे. 20 अप्रैल 1946 को उन्होंने मौलाना को पत्र लिखकर कहा कि वे एक स्टेटमेंट जारी करें कि अब वह अध्‍यक्ष नहीं बने रहना चाहते. उस वक्त कांग्रेस महासचिव रहे Acharya JB Kriplani अपनी किताब ‘गांधी हिज लाइफ एंड थाटॅ्स’ में लिखते हैं कि – कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक 11 दिसंबर 1945 को थी, जिसे आगे बढ़ाकर 29 अप्रैल 1946 किया गया. इसी दिन कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होना था. परंपरा के मुताबिक प्रांत की 15 कांग्रेस कमेटियां ही अध्यक्ष के नाम का प्रस्ताव रखती थीं… इनमें से 12 कमेटियों ने Sardar Patel का नाम प्रस्तावित किया था. किसी भी कमेटी ने नेहरू का जिक्र तक नहीं किया. मैंने कमेटी के फैसले के बाद पटेल के नाम वाले प्रस्ताव का पर्चा गांधीजी के सामने पेश किया. उन्होने देखा कि इसमें नेहरू का नाम नहीं था तो उन्होंने बिना कुछ कहे पर्चा मुझे वापस दे दिया. क्योंकि आचार्य जेबी कृपलानी लंबे समय तक Gandhi ji के साथ काम कर चुके थे, वो गांधी की आंखों से समझ जाते थे कि वे क्या चाहते हैं और क्या नहीं. कृपलानी ने नया प्रस्ताव तैयार कराया जिसमें पटेल के अलावा नेहरू को भी Congress का अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव था. इस पर सबने दस्तखत किए… सब जानते थे कि गांधी अपने मन से नेहरू को ही अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते हैं. कृपलानी की मानें तो बापू की मर्जी से सरदार पटेल की नाम वापसी का एक पत्र तैयार कराया गया. पहले पटेल ने इस पत्र पर दस्तखत करने से मना कर दिया था. एक तरह से पटेल ने नेहरू का विरोध किया था या कह सकते हैं कि वो भी खुद को प्रधानमंत्री बनते देखना चाहते थे. लिहाज़ा जब वो पत्र गांधी तक पहुंचा तो उसमें पटेल के दस्तखत नहीं थे. उन्होने फिर से पटेल के पास पत्र भिजवाया. अब पटेल समझ चुके थे कि गांधी जी नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने के लिए अड़ गए हैं. पटेल गांधी जी का विरोध नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होने पत्र पर दस्तखत कर दिए. और इस तरह जवाहर लाल नेहरू को निर्विरोध कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया और आजाद भारत को पहला अंतरिम प्रधानमंत्री मिला.

कैसे सही साबित हुआ महात्मा गांधी का वो फैसला?

Jawahar Lal Nehru नई उम्र के होने के साथ अच्छे खासे पढ़े-लिखे और modern नेता थे. आजादी के बाद हम वो भारत थे, जिसके नेताओं को पूरी दुनिया के साथ एक ही चादर पर बैठकर अपने तौर-तरीके से आगे बढ़ना था. कुछ साल बाद ही पटेल का निधन भी हो गया. इससे ये साबित होता है कि बापू का फैसला सही था. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 14 अगस्त 1947 की आधी रात को अपना फेमस Tryst With Destiny भाषण दिया था… वे 16 साल 286 दिन तक देश के PM रहे और पद पर रहते हुए ही उनका निधन हो गया. आगे बढ़ने से पहले नेहरू की जिंदगी और उनके राजनीतिक सफर पर भी नज़र डाल लेते हैं.

पंडित नेहरू का जन्म साल 1889 में यूपी के इलाबाहाद में हुआ था.

साल 1907 में वे Cambridge के Trinity College में लॉ की पढ़ाई करने गए.

साल 1912 में भारत लौटे और Allahabad High Court में वकालत शुरू की.

साल 1916 में उन्होने कमला कौल से 8 फरवरी के दिन शादी की.

साल 1917 में उनकी बेटी Indira Gandhi का जन्म हुआ.

साल 1920 में नेहरू Non-cooperation Movement में शामिल हुए.

साल 1930 में उन्होने Dandi March में हिस्सा लिया और गिरफ्तार हुए.

साल 1936 में Indian National Congress के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की.

साल 1946 में उन्हे INC का अध्यक्ष और PM पद के लिए चुना गया.

साल 1947 में देश आज़ाद हुआ और नेहरू को Internal PM बनाया गया.

साल 1952 में पहले आम चुनाव के बाद मई में नई सरकार बनी और Nehru PM बने.

साल 1957 में दूसरी बार हुए आम चुनाव में फिर उनकी सरकार बनी दूसरी बार पीएम बने.

साल 1962 में तीसरी बार हुए चुनाव में भी उनकी सरकार बनी और तीसरी बार पीएम बने.

साल 1964 में 27 मई के दिन उन्होने PM रहते हुए ही नई दिल्ली में अंतिम सांस ली.

क्या चीन युद्ध की वजह से गई नेहरू की जान?

नेहरू कार्यकाल के दौरान हुए India-China War में देश की हार के बाद से Nehru बीमार रहने लगे थे. 20 नवंबर 1962 की वो काली तारीख थी जब प्रधानमंत्री नेहरू ने चीन के साथ युद्ध में भारत की हार स्वीकार कर ली थी. युद्ध शुरू होने से पहले तक उन्हें भरोसा था कि चीन उनका दोस्त है. ‘जवाहरलाल नेहरू – एक बायोग्राफी’ में सर्वपल्ली गोपाल लिखते हैं कि – तत्कालीन राष्ट्रपति S. Radhakrishnan ने अपनी ही सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और नेहरू के फैसलों पर सवाल उठाए थे. एक के बाद एक सरकार और कांग्रेस नेता दबी जुबान में चीन युद्ध के लिए नेहरू को जिम्मेदार मानते थे. नेहरू गंभीर रूप से बीमार हो गए थे. उन्हें स्वास्थ्य लाभ के लिए करीब एक साल कश्मीर में रहना पड़ा था. वे सालभर में भले ही शारीरिक रूप से ठीक हो गए हों, लेकिन मानसिक रूप से टूट चुके थे. नेहरू मई 1964 को दिल्ली लौटे. 27 मई को जब बाथरूम से लौटे तो पीठ दर्द की शिकायत की. तुरंत डॉक्टरों को बुलाया गया. इतने में वे बेहोश हो चुके थे. 27 मई 1964 की दोपहर 2 बजे बेहोशी की हालत में ही दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो चुका था. अक्सर हमने अपने बुजुर्गों को आपस में बातचीत करते सुना है कि कभी-कभी कुछ लोगों को अपनी मौत की आहट सुनाई दे जाती है. शायद ऐसा ही कुछ पंडित नेहरू के साथ भी हुआ थी. शायद यही वजह थी कि मरने से पहले ही उन्होने अपनी वसीयत लिख दी थी. उन्होंने साफ लिख दिया था कि उनकी मौत के बाद कोई कर्मकांड यानी तेरहवीं न की जाए. उन्होंने लिखा था – मैं पूरी गंभीरता से ये ऐलान करना चाहता हूं कि मेरी मृत्यु के बाद मेरे लिए कोई धार्मिक अनुष्ठान न किया जाए. इस तरह के अनुष्ठान में मेरी कोई आस्था नहीं है. मैं चाहता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरा दाह संस्कार हो. अगर मैं विदेश में मरूं तो वहीं मेरा दाह संस्कार किया जाए, लेकिन मेरी अस्थियां इलाहाबाद लाई जाएं. इनमें से मुट्‌ठीभर गंगा में प्रवाहित की जाएं. और बाकी हिस्से को आकाश में ऊंचे विमान में ले जाकर वहां से उन खेतों पर बिखेर दिया जाए जहां हमारे किसान मेहनत करते हैं. ऐसे थे आधुनिक भारत के निर्माता और आज़ाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू.